Wednesday, January 19, 2011

बहुत दिन पे है हमने लिखा, और क्या :P

// Any resemblance to any person dead or alive is merely co-incidental.

ज़िन्दगी बन गयी इक सजा, और क्य़ा
हर ख़ुशी हो गयी अब हवा, और क्या
हम थे यूँ चल रहे, अरमान मचल रहे
हो गया सब धुआं, और क्या

ख्वाब देखे थे जो, वो हुए लापता
किसको कोसूं भला और कोसूं भी क्या
खुद के ही थे सपन, खुद ही करके दफ़न
राख से था शुरू राख ही अब बचा, और क्या

हमको लगता था कि सारी दुनियां हसीं
सब है मुट्ठी में अब, ना कोई है कमी
बस यहीं थम ये जाए मेरी जिंदगी
और बस ये सफ़र थम गया, और क्या

आंख में अश्क हो, और दिल में दरद
पर रहेगी मेरे होंठ पे वोह हंसी
तू भले जिंदगी से गयी अब मेरे
जहर थोडा ग़मों का पिया, और क्या

माना कि बिन तेरे, जिंदगी रंग बिना
पर ये मतलब नहीं कि मैं जिन्दा नहीं
माना तुझसे था मुझको बहुत प्यार पर
थोड़ा आंसू बहाया किया, और क्या

मानता हूँ कि मुश्किल तेरे बिन सफ़र
आँखों में तेरे सपने अभी तक भी हैं
पर ना ये तू समझ कि मैं कमजोर हूँ
दिल को सदमा लगा इक जरा, और क्या ...


रोहित

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