रुपया पैसा धन और दौलत
जीवन का क्या बस सार यही
ये चक्रवात धर्म अर्थ काम का
इसका क्या कोई पार नहीं ?
क्या जीवन बस पाना ही है
अनवरत चले जाना ही है,
ये अंतहीन पगडण्डी जो
इसका क्या कोई पार नहीं ?
क्या समय नहीं थोडा रुकने का
और रुक के सुस्ताने का,
बिन सोचे जिस राह चले हम
इसका क्या कोई पार नहीं ?
तो तनिक रुको, रुक कर सोचो
क्या राह यही मंजिल की है,
ये प्रश्न और वोह राह तेरी
जीवन का है बस सार यही ||
रोहित
Saturday, April 3, 2010
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1 comments:
sahi hai be kavi kab se bhai jaan....
aur wo bhi is darje kaa....title is gud "इसका क्या कोई पार नहीं ?"
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